सोमवार, 19 सितंबर 2011

मन्नू भाई बोले तो… मूर्ख लाल मलाई काटे

मेरे इलाके में रहने वाले मिथ्यानंदजी दो कौड़ी के जमीनी नेता हैं। जमीनी नेता इसलिए कि इन्होंने अपने पोस्टर हर खंभे पर नीचे तक लगवा रखे हैं। जिससे ढाई माह का पिल्ला भी मामूली प्रयास से रोज इनका मुंह धुलवा देता है। ये जनाब मैडम के प्रति खास आस्था रखते हैं। मैडम का स्वास्थ्य थोड़ा सुधरा तो मिथ्यानंदजी कॉलोनी में मिठाई बांट रहे थे। मेरे घर पर आए तो मैंने मन्नू भाई... के कारनामों की बात छेड़ दी।
...ये लो मैं तो पहले ही कह रहा था कि मैडम में पूर्ण आस्था रखने वाले मिथ्यानंदजी मुझसे ये बेहुदा सवाल करेंगे कि मन्नू भाई कौन? इसके जवाब में मैंने उनके सामने ही यह बात कही कि ऐसा पूछने वाले की संसार में कोई जगह नहीं है और ऐसे धरती के बोझ को बंगाल की खाड़ी में जाकर समाधि ले लेनी चाहिए या फिर किसी गंदे नाले को और गंदा करते हुए डूब मरना चाहिए। नाले का नाम सुनकर पहले तो मिथ्यानंदजी खुश हुए, लेकिन डूब मरने के लिए नहाने जैसी प्रक्रिया से गुजरना उन्हें कतई मंजूर नहीं है, इसलिए उदास भी हो गए।
बहरहाल, उनकी परेशानी को दूर करते हुए मैंने कहा, मन्नू भाई यानी ‘मूर्ख लाल मलाई काटे’। मिथ्यानंद के हठ को दूर करने के लिए मैंने ‘मूर्ख लाल मलाई काटे’ के प्रवक्ता की तरह उनकी शान में कसीदे भी पढ़ दिए कि ‘वो’ देश के सबसे ऊंचे पद पर हैं। उनकी सबसे बड़ी काबिलियत यही है कि वे मैडम की पसंद हैं। तब तक, जब तक कि मैडम को कोई दूसरा कर्मचारी नहीं मिल जाता।’ मेरे इस जवाब पर मिथ्यानंदजी हत्थे से ही उखड़ गए। बोले, ‘ये क्या मजाक है।’ मैंने कहा, ‘हां भाई ये बिल्कुल सच है।’ लेकिन मिथ्या का लबादा ओढ़े मिथ्यानंदजी को यकीन ही नहीं आ रहा है कि 'मूर्ख लाल मलाई काटे' अपने देश के सबसे ऊंचे पद पर हैं। वो तो समझ रहे थे कि मैडम से ऊपर कोई नहीं है।
 मैंने कहा, ‘मिथ्यानंदजी यह सच है और आपकी तरह लोगों के लिए रहस्य भी कि मन्नू भाई सबसे ऊंचे पद पर कैसे पहुंच गए। यह इस सदी का सबसे बड़ा और गहरा रहस्य है और यह रहस्य केवल मैडम ही जानती हैं।’
ये मैडम की ही मेहरबानी है कि हमारे 'मूर्ख लाल मलाई काटे' राजनीति की पिच पर ऐसे बैट्समैन की तरह डटे हुए हैं, जो हर बॉल पर आउट हो जाता है, लेकिन अंपायर आउट ही नहीं देता। ... क्योंकि अंपायर मैडम हैं ना। आलम यह है कि 'मूर्ख लाल मलाई काटे' खेलने तो वन-डे आए, लेकिन अब इस देश की राजनीतिक पिच पर पिछले सात सालों से बल्ला भांज रहे हैं। 
'मूर्ख लाल मलाई काटे' की कूबत का लोहा पूरी दुनिया मानती है, लेकिन विरोधी पुल्लू लाल उन्हें सबसे कमजोर मानते हैं, क्योंकि वे अपने डिसीजन खुद नहीं लेते, बल्कि मैडम लेती हैं। हां एक बात और कि हमारे 'मूर्ख लाल मलाई काटे' लड़ने-झगड़ने में बिलकुल यकीन नहीं रखते, इसीलिए चुनाव तक नहीं लड़ते। बिना चुनाव लड़े ही वे सबसे ऊंचे पद पर पहुंच गए और जो चुनाव लड़कर आए वे बेचारे उनके अंडर काम कर रहे हैं।
मिथ्यानंदजी को फिर भी यकीन नहीं आया, तो मैंने तुरंत अपने बेटे को बुलाया, जो अक्सर 'सिंह इज किंग' फिल्म का गाना जोर-जोर से गाता है। अपने बेटे से मिथ्यानंद जी के सामने ही पूछ लिया, ‘बेटा ये बताओ, 'सिंह इज किंग' का मतलब जानते हो।’ उसने मुझे इस तरह घूरा जैसे कि मैं उसका उल्लू और वो मेरा पट्ठा हो।’ उसने थोड़ी देर सोचा फिर बोला, ‘सिंह इज किंग वही तो हैं, जो मैडम के यहां काम करते हैं। अब तो उन्हें वहां काम करते हुए सात साल पूरे हो चुके हैं।’ मिथ्यानंदजी यह सुनकर काफी देर तक हें...हें...हें... करते रहे। मिथ्यानंदजी की हें... हें... हें... कब ढेंचूं... ढेंचूं... में तब्दील हो गई, पता ही नहीं चला। ‘नमस्ते’ कहकर चले गए।
खैऱ, अब मैं आपसे मुखातिब होता हूं। मैं तो एक ही बात समझा कि हर काबिल आदमी नाकाबिलों की फौज में से एक को सरदार (हेड) चुनता है, जिसके पास ‘हेड’ तो हो लेकिन हेड में कुछ नहीं हो। उसे आप सिंह इज किंग कहें या फिर मूर्ख लाल मलाई काटे... क्या फर्क पड़ता है। अरे खतम हो गया मामू...।
                                          
                                                                                                       
जेपी यादव
वरिष्ठ उपसंपादक
दैनिक जागरण
0120-2699756 (घर)
Jpyaadavjp@gmail.com

शुक्रवार, 9 सितंबर 2011

छुट्टी चाहिए, तो आजमाइए

ऑफिस से छुट्टी लेने का हुनर सबको नहीं आता, इसीलिए शातिर कर्मचारी तो अपने बॉस को आसानी से बेवकूफ बना लेते हैं और जिन्हें छुट्टी नहीं मिलती, वे होते हैं शराफत अली या फिर कोई सज्जन कुमार। इनके उलट दो होनहारों तेज प्रकाश और योग्य कुमार को ही ले लीजिए। ऑफिस में काम नहीं करने के मामले में तेज प्रकाश को तेजी हासिल है, तो योग्य कुमार को योग्यता। कभी-कभार ऑफिस में सख्ती हुई भी तो ये अपने हुनर का जलवा पेशकर अपने आपको आसानी से बचा ले जाते हैं। जब कभी इन दोनों को लगता है कि इन्हें काम करना ही पड़ेगा, तो नाना-नानी और दादा-दादी तक को श्रद्धा से याद करना शुरू कर देते। इसलिए नहीं कि श्राद्ध शुरू होने वाले हैं और वे अपने पूर्वजों तक को याद करेंगे, बल्कि काम नहीं करने के बहाने के तौर पर वे किसी की मौत से लेकर श्राद्ध तक का बहाना लिखित में शर्ट की ऊपर वाली जेब में रखते हैं। यही बहाने अगर बॉस को मूर्ख बनाने में खरे उतरे तो ठीक, वरना बहानों की कोई कमी नहीं है।
योग्य कुमार और तेज प्रकाश ने एक बार खुलेआम दावा किया था कि उनके पास ऑफिस में लेट पहुंचने के लिए 120 और झूठ बोलने के 300 तरीके हैं। यकीन मानिए, इन दोनों का आकड़ा जाकर 420 पहुंचता है। इन दोनों की एक खूबी यह भी है कि ये अपने चाहने वालों को भी छुट्टी लेने का फॉर्मूला बताते रहते हैं। ऐसे में पूरा ऑफिस ही इन दोनों की मुट्ठी में रहता है। कहने का मतलब काम को कुछ इस तरह करते हैं कि काम को भी इस बात का पछतावा होता है, 'हाय किन हाथों में फंस गया।' काम नहीं करने के मामले में इन दोनों ने जाने-अनजाने ही कितने रिकॉर्ड बनाए होंगे, मगर अफसोस इनकी उपलब्धि के प्रदर्शन के लिए इनकी कोई किताब पब्लिश नहीं हुई है। अभी कुछ ही दिन हुए हैं। बॉस ने तेज प्रकाश और योग्य कुमार को अपने केबिन में बुलाया। यह तो तेज प्रकाश की तेजी और योग्य कुमार की योग्यता का नमूना भर  है कि बॉस ने बुलाया सुबह, लेकिन दोनों पहुंचे शाम को वह भी हांफते हुए। इस समय बॉस घर जाने की तैयारी में थे। दोनों ने देर आयद दुरुस्त आयद की तर्ज पर केबिन में घुसते ही तकरीबन 60 डिग्री आगे की ओर झुकते हुए प्रणाम किया, ऐसा करता देख बॉस त्रिपाठी एक पल को घबरा गए। हालांकि, चापलूस पसंद बॉस की तरह त्रिपाठीजी को इन दोनों का यह अंदाज खुश कर गया। लेकिन मिजाज से खड़ूस होने के चलते चेहरे पर वही पुरानी तरह की मुर्दनी छाई रही, जैसे किसी 'चौथा-उठाला' में गए शख्स की भूखे  लौटने के बाद होती है। बॉस के चेहरे पर कुछ देर तक यूं ही मुर्दनी सी छाई रही। फिर संभलते हुए बोले, 'सुना है तुम दोनों ऑफिस में ठीक से काम नहीं करते।' तेज प्रकाश को इस सवाल के बारे में पूर्व से ही जानकारी थी, इसलिए तुरंत इसका जवाब भी दे दिया। 'सर, सुनी-सुनाई बातों पर भरोसा नहीं करते।' बॉस यह सुनकर चुप हो गए, क्योंकि कितना भी शातिर से शातिर बॉस इसका जवाब देने से पहले सोचेगा। अब बारी योग्य कुमार की थी। योग्य कुमार कुछ इस तरह महसूस कर रहे थे, जैसे कटघरे में खड़े हत्या के आरोपी की फांसी की सजा माफ होने के साथ वह बाइज्जत बरी होने वाला हो। योग्य कुमार बोले, 'लगता है किसी ने हमारे खिलाफ आपके कान भरे हैं।' बॉस के चेहरे पर कोई प्रभाव पड़ता नहीं देख योग्य कुमार तुरंत बोले, 'सर आपको उल्लू बनाया गया है। इतना सुनते ही बॉस की आंखों के आगे बहुत से उल्लू घूमने लगे और मन ही मन स्वर्गीय पूज्य पिताजी को याद कर सोचने लगे कि कहीं वे 'उल्लू के पट्ठे' तो नहीं हैं। तभी तेज प्रकाश ने बात संभालते हुए कहा, 'कहने का मतलब। हम तो बस यही कहना चाहते हैं कि लोग हमारे खिलाफ आपके कान भरते हैं।' इसके बाद दोनों बॉस के केबिन से बाहर आ गए।
ऑफिस में तेज प्रकाश और योग्य कुमार का वही जलवा है, जो कॉंन्ग्रेंस पार्टी में राहुल गांधी का। क्या कहा? आपको यकीन नहीं आता। ... तो इसमें मैं क्या करूं। यह आपकी समस्या है, सुनते हैं इसका कोई इलाज भी नहीं है। खैर, आगे सुनिए। ... इस ऑफिस में तैनात छेनू चपरासी बॉस को भले ही पानी पिलाना भूल जाए, लेकिन बड़े-बड़ों को पानी पिलाने का माद्दा रखने वाले तेज प्रकाश और योग्य कुमार को पानी पिलाना कभी नहीं भूलता। ये दोनों जैसे ही ऑफिस पहुंचते हैं, पानी का ताजा गिलास लिए छेनू हाजिर हो जाता है। आज बॉस से निपटकर या कहें निपटाकर दोनों जैसे ही अपनी सीट पर बैठे तभी मुंह लटकाए छेनू योग्य कुमार और तेज प्रकाश के पास पहुंच गया। लगभग रोते हुए छेनू बोला, 'साहब दो दिन की छुट्टी चाहिए, लेकिन बास ने साफ इनकार कर दिया है।' सामने कुर्सी पर दोनों लोगों की त्योरियां चढ़ गईं। योग्य कुमार बोले, 'ऐसा कैसे हो सकता है। छुट्टी पर तुम्हारा पूरा अधिकार है। इस अधिकार से तुम्हें कोई वंचित नहीं कर सकता।' इसके बाद योग्य कुमार ने पान मुंह में कुचरकर कुछ इस तरह थूका, जैसे कोई गुस्सा थूकता है। लेकिन इसकी प्रतिक्रिया में तेज प्रकाश ने ऐसा कुछ नहीं किया और अपना गुस्सा पान की पीक के साथ गटक गए। इसका मतलब तेज प्रकाश ने अपना गुस्सा पी लिया। दोनों कुछ देर तक गहन मुद्रा में कुछ सोचते रहे फिर योग्य कुमार ने मोर्चा संभालते हुए कहा, 'पहले तो बॉस को जीभर के गालियां दो।' फिर क्या था। हरि इच्छा मानकर छेनू ने बॉस को जीभर के गालियां दीं, बीच में उमस भरी गर्मी में थकान हुई तो एक गिलास पानी पी लिया। छेनू की गालियां खत्म हुईं तो उसका चेहरा विश्व विजेता की तरह चमक रहा था। इस दौरान कोई एड मेकर इस समय होता तो छेनू को एनर्जी ड्रिंक के एड के लिए बतौर मॉडल साइन कर लेता। मगर दुर्भाग्य... छेनू का नहीं... एड मेकर का दुर्भाग्य भाई...।
थोड़ी देर तक माहौल में शांति रही। अब बारी योग्य कुमार की थी। तुरंत छेनू को गुरुमंत्र दिया, लेकिन यह भी हिदायत दी कि इसकी चर्चा बॉस बिरादरी के लोगों से मत कर देना, नहीं तो हमारा कुछ नहीं तुम्हारी नौकरी पर जरूर बन आएगी। योग्य कुमार ने कहना शुरू किया, देखो छुट्टी दो की बजाय तीन दिन की ले लेना वो भी बिना बताए। चौथे दिन ऑफिस आने से पहले एक धार्मिक स्थल पर बिकने वाला मिठाई का खाली डिब्बा मुझसे ले लेना और उसमें छन्नू हलवाई की मिठाई खरीदकर पैक कर लेना और पूरे ऑफिस में यह कहकर बांट देना कि फलां धार्मिक स्थल पर गया था, प्रसाद लाया हूं। सबसे पहले बॉस को ही खिलाना और तुम्हारा काम हो जाएगा।
छेनू को यह मंत्र देने के बाद दोनों ने ऑफिस में दो घंटे काम किया और ओवरटाइम का फॉर्म भरकर निकलने ही वाले थे कि छेनू अदरक और इलायची के टेस्ट की चाय लिए सामने खड़ा था। इसके जो हुआ आप भी जानते हैं। फिर भी लिख देता हूं। चाय पीने के साथ तेज प्रकाश और योग्य कुमार ने एक-एक घूंट के साथ बॉस को 10-10 गालियां दीं और ऑफिस की ओर देखकर सोचने लगे कल फिर आना है इस ऑफिस पर एहसान करने....।

 जेपी यादव
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यस बॉस... ऑलवेज राइट

मूंगफली तोड़नी नहीं और पगार छोड़नी नहींके सिद्धांत पर चलने वाला कर्मचारी ही जीवन में सच्चे कामचोर का दर्जा पा सकता है। हालांकि इससे नुकसान होते हैं, लेकिन कामचोरी जैसे परम आनंद के आगे सबकुछ फीका पड़ जाता है। यही काम अगर बॉस की निगरानी, कहने का मतलब शागिर्दी में हो, तो क्या कहना। हनुमंत शुक्ला ऐसे ही बॉस हैं, जिन्हें ऐसा कोई सगा नहीं, जिसको हमने ठगा नहींकी उपाधि और उपलब्धि इंटर में पढ़ाई के दौरान ही हासिल हो गई थी। नौकरी में आते-आते आलसी भी हो गए। आलसी भी इतने कि सड़क पर उबासी लेने के दौरान कोई बदतमीज चिड़िया अगर बीट कर दे, तो जब तक नगर निगम का कर्मचारी माफी मांगने के साथ उनका मुंह न धुला दे। आगे नहीं बढ़ते। कई बार ऑफिस लेट आने का हनुमंत शुक्ला का यह बहाना मैनेजमेंट के सामने बिलकुल सटीक बैठा है, ‘क्या बताऊं, आज मेरा पैर गऊ माता के द्रव्य प्रसाद पर पड़ गया, इसलिए मीटिंग में नहीं आ सका।इस पर कोई यह सवाल भी दाग सकता है, ‘पैर धोकर भी आ सकते थे ऑफिस। भाई कौन ऐसे अपवित्र हो गए थे कि गंगा नहाने जैसा काम करना पड़ा। ‘ … लेकिन बॉस होने के कारण हनुमंत शुक्ला को समझाना हाथी को बाथरूम में नहलाने जैसा है। अगर कोशिश करूं तो हाथी को बाथरूम में नहला भी सकता हूं, लेकिन बॉस को समझानान बाबा ना, क्योंकि बॉस इज ऑलवेज राइट। ऐसे में इस हकीकत से कोई इनकार कर सकता कि अगर बॉस अनजाने ही घोड़े को घोड़ी कह दे, तो बॉस को समझाने की बजाय घोड़े का लिंग बदलवाना ज्यादा फायदे का सौदा होता है।
कर्मचारी का चोला उतारकर बॉस का पद पर पाए ज्यादा दिन नहीं हुआ है। हनुमंत शुक्ला बॉस होने के साथ थोड़े दिन इस अकड़ में रहे कि मैं बॉस हो गया हूं।थोड़े दिनों तक हनुमंत शुक्ला ने अपने जूनियर और सबोर्डिनेट के सामने ऐसी हनक दिखाई कि उनका टैरर मैनेजमेंट को खुश कर गया। उन्हें देखकर लोग जल्द ही बॉस की परिभाषा कुछ इस तरह देने लगे, ‘थोड़ी सी अकड़ + बदतमीजी + प्रमोशन से दिमाग खराब = बॉस होता है।जल्द ही हनुमंत शुक्ला का यह भ्रम टूट गया, जब जबरदस्त पैरवी पर उनके भी बॉस आ गए। व्यवहार मे वे उसके भी बॉस या कहें बाप निकले। यही से हनुमंत का अंगुलिमाल की तरह हृदय परिवर्तन हो गया। और बहुत जल्द उन्हें यह अहसास हो गया कि आखिरकार मैं भी एक कर्मचारी हूं। कहावत भी है, ‘कुत्ते के दिन आते हैं और जाते भी है और ऊंट की औकात तब तक, जब तक कि उससे ऊंचा पहाड़ नहीं मिलता।
बस यहीं से हनुमंत ने अपने बॉस को मक्खन लगाना शुरू कर दिया। और देखते-देखते वे फिर से आला दर्जे के कामचोर हो गए। जल्द ही मूंगफली तोड़नी नहीं, पगार छोड़नी नहींके सिद्धांत को नैतिक शिक्षा की तरह अपने जीवन में उतार लिया। इस तरह हनुमंत से बॉस और जूनियर दोनों खुश। पिछले तीन साल से वे एक ही जगह टिके हुए हैं, बिना कोई काम किए। साथ में तीन प्रमोशन भी मिल चुका है। हनुमंत को प्रमोशन क्यों और कैसे मिले? यह सवाल कौन बनेगा के लिए सुरक्षित है, जिसमें प्रतियोगी से सवाल किया जाएगा। हनुमंत शुक्ला को प्रमोशन को प्रमोशन किस आधार पर मिला?
ऑप्शंस
ए- चाटुकारिता
बी- चमचागिरी
सी- मक्खनबाजी
डी- इनमें से सभी
इस अंतिम सवाल का सही जवाब देकर एक प्रतियोगी करोड़पति हो जाएगा।
खैर, अब  हनुमंत शुक्ला के नक्श-ए-कदम पर चलते हुए उनके जूनियर भी चमचागिरी के नए पायदान चढ़ रहे हैं। और जो नहीं चढ़ रहे हैं, उन्हीं के दम से ऑफिस की इज्जत बची पड़ी है। वरना हनुमंत अपने बॉस की नजर में कुख्यात कर्मी हैं और उन्हें दो बार सर्वश्रेष्ठ कर्मचारी का खिताब भी मिल चुका है। दरअसल, हनुमंत काम करने के दौरान काम चालू रखने का ऐसा माहौल तैयार करते हैं और इस दौरान खूब शोर करते हैं। इस गलती पर इस चीखे, उस गलती पर उस पर चीखेयह सब करने के दौरान काम ठप पड़ जाता है। इससे साथी कर्मियों और मैनेजमेंट को लगती है कि यही शक्स काम कर रहा है, बाकी सब कामचोर हैं। उन्होंने जो कुछ अनुभव किया, सब अपने जूनियरों को भी सिखा दिया। सीखने-सिखाने का सिलसिला जारी है।
आज ही की घटना को लीजिए। आज हनुमंत शुक्ला ऑफिस में लेट आए। उनके साथी सक्सेना जी ने कहा, ‘सर आपको याद कर रहे हैं।हनुमंत भी मूड में थे, सो झनझनाती जवाब भी दे दिया। याद स्वर्गीय को किया जाता है, हम तो अभी जिंदा हैं सक्सेना। सर मुझसे मिलना चाहते होंगे।’ ‘ हां-हांकहते हुए सक्सेना हनुमंत के सेंर ऑफ ह्यूमर को ताड़ गए और बेवजह ही ठहाका मार कर हंस पड़े।
उधर, हनुमंत बॉस के कमरे में 12.20 मिनट पर बदहवास दाखिल हुए और बोले, ‘सर गुड मॉर्निंगयह सुनकर बॉस को गुस्सा आया, आटे में नमक की तरह। यहां तक तो ठीक था, लेकिन वाटर प्रूफ से लैस बॉस के हाथ में बंधी घड़ी, भरी दोपहरी में 12.20 मिनट परसर गुड मॉर्निंगसुनकर पानी-पानी हो गई, गनीमत रही कि खराब नहीं हुई।
इस बीच सुपर बॉस बोले, ‘क्या इरादा हैहनुमंत तुरंत बोल पड़े, ‘सर सेलरी मिलते ही गर्मी की छुट्टियों में घूमने जाने का इरादा है।’  यह सुनते ही सुपर बॉस की आंखों में चमक आ गई। बोले, ‘ भई हनुमंत मेरे बीवी, बच्चों का भी टिकट करवा देना। मैं भी तुम्हारे साथ चला चलूंगा।
 हो जाएगा सर। यह कहते हुए हनुमंत सुपर बॉस के केबिन से बाहर निकले और काम में तल्लीन सक्सेना जी को टोकते हुए कहा, ‘सक्सेना जी मैं कुछ दिनों के लिए छुट्टियों पर जा रहा हूं, ऑफिस की जिम्मेदारी तुम पर है।
इतना कहने के साथ ही हनुमंत शुक्ला ऑफिस से ऐसे गायब हो गए, जैसे दिन में तारे। ठीक 5 मिनट बाद सुपर बॉस अपने केबिन से निकले और काम में तल्लीन सक्सेना जी को बिना कोई आदेश दिए निकल गए। सक्सेनाजी ठगे से रह गए। साथियों ने सक्सेना से सहानुभूति जताने की बजाय उन्हें हिकारत भरी नजर से देखा और सभी बाहर निकल गए सुपर बॉस के साथ हनुमंत शुक्ला को भी हैप्पी जर्नी कहने
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शनिवार, 3 सितंबर 2011

पहल (बाल नाटक)

                          
                    
                                                                
  जेपी यादव                                                                                      
             
                                       
सीन-एक
मंच पर दो सूत्रधार एक के एक बाद आते हैं। सूत्रधार (एक) के मुंह पर फेस पेंटिंग बनी हुई है, दाएं-बाएं गाल पर तिरंगा बना हुआ है। सूत्रधार (दो) क्रिकेटर के वेष में है। हाथ में बैट, ग्लब्स, सिर पर कैप, पैर में पैड है। दोनों सूत्रधार अलग-अलग भाव-भंगिमा बनाकर एक-दूसरे को काफी देर तक घूरते हैं। सूत्रधार के हाव-भाव से लगता है कि वे एक-दूसरे को नहीं जानते। सूत्रधार (एक) इंडिया... इंडिया... (के नारे लगाता है।) सूत्रधार (दो) बैट हवा में लहराकर दर्शकों का अभिवादन करता है। यह सब सूत्रधार (एक) आश्चर्यचकित होकर देखता है।)
सूत्रधार (एक): कौन है बे... ?
सूत्रधार (दो): (चौंकते हुए) तुम मुझे नहीं जानते?
सूत्रधार (एक): नहीं...
सूत्रधार (दो): (शर्ट के दाईं तरफ के कॉलर को गर्व से हिलाते हुए) बिल्कुल नहीं जानते।
सूत्रधार (एक): नहीं...
सूत्रधार (दो): (शर्ट के बाईं तरफ के कॉलर को गर्व से हिलाते हुए) बिल्कुल भी नहीं जानते।
सूत्रधार (एक): (दर्शकों की तरफ देखते हुए) बिल्कुल जानते हैं कि तुम पागल हो।
सूत्रधार (दो): पागल नहीं, मैं सचिन...
सूत्रधार (एक): (बीच में टोकते हुए) सचिन... तेंदुलकर... तब तो तुम पूरे पागल हो।
सूत्रधार (दो): मेरा नाम सचिन तेंदुलकर नहीं, सचिन सहवाग है।
सूत्रधार (एक): (सूत्रधार (दो) का हाथ पकड़कर) चलो तुम्हें Mental Hospital में भर्ती करवाता हूं। 
सूत्रधार (दो): क्या...? Mental Hospital क्यों
सूत्रधार (एक): तुम्हारा इलाज Mental Hospital में ही हो सकता है। क्योंकि सिर्फ बैट पकड़ने वाला हर शख्स अपने आप को सचिन तेंदुलकर ही समझता है।

सूत्रधार (दो): अच्छा चल छोड़ यार। तुम्हें पता है। यहां कौन आने वाला है।
सूत्रधार (एक): कौन?
सूत्रधार (दो): सचिन, महेंद्र, युवराज, हरभजन...
सूत्रधार (एक): (बीच में टोककर) ये कौन हैं?
सूत्रधार (दो):  (सूत्रधार (एक) को घूरकर देखता है फिर जोरदार ठहाका लगाता है और दर्शकों की ओर मुखातिब होकर कहता है।) जब तक इन खिलाड़ियों के आगे सरनेम न लगाओ या फिर निक नेम न बोलो तो लोग सचिन को इंश्योरेंस एजेंट, महेंद्र को दुकानवाला, युवराज सिंह को बॉडी बिल्डर और हरभजन को कीर्तन मंडली का भजन-कीर्तन वाला समझते हैं। (सूत्रधार (एक) की ओर देखकर) कुछ सुनाई दे रहा है। खिलाड़ी आ रहे हैं। वह देखो अरे पूरी इंडियन टीम आ रही है। दोनों सूत्रधार मंच से चले जाते हैं।)
सूत्रधार (दो): (कुछ सेकेंड बाद मंच पर आता है। जल्दी से कहता है।) क्रिकेट तो बहाना है। हमें तो कुछ और ही दिखाना है।
(मंच से चला जाता है।)

                 
सीन- दो
मंच पर सभी कलाकार आते हैं। सबके चेहरों पर अलग-अलग खिलाड़ियों के पोस्टर लगे हुए हैं। महेंद्र सिंह धोनी, हरभजन सिंह, सचिन, सहवाग, युवराज सिंह मुख्य हैं। सबके हाथ में बैट है। सभी खिलाड़ी अपना-अपना एक्शन करके दिखाते हैं, जैसे हरभजन बॉलिंग और सचिन बैटिंग करके दिखाते हैं। हर खिलाड़ी गीत गाता है।
भज्जी के पोस्टर वाला खिलाड़ी: मैं हूं भज्जी, बॉलिंग से मेरी डरता हर कोई जी।
अपने कमाल हैं, करते हम धमाल हैं। सामने हो कोई भी,
अपने आगे, चलती किसी की न जी (साथी खिलाड़ी गाते हैं)।
जोश में जब आते हैं, कुछ भी कर जाते हैं।
उड़ा हम देते हैं, सबकी धज्जी जी।
(खिलाड़ी सारी पंक्ति दोहराता है।)

सचिन के पोस्टर वाला खिलाड़ी: मैं हूं ब्लास्टर, क्रिकेट का मास्टर
कहती है दुनिया मुझे मास्टर ब्लास्टर
शॉट लगाता हूं, छक्के छुड़ाता हूं
बॉलर को दिन में मैं तारे दिखाता हूं।
चलता है अपना क्रिकेट में जलवा।
जलवा... जलवा... जलवा...
(खिलाड़ी सारी पंक्ति दोहराता है।)


युवराज के पोस्टर वाला खिलाड़ी:
हम किसी से कम नहीं, हम जैसा किसी में दम नहीं।
कैसा भी हो बॉलर, स्पीनर या फास्टर
बल्ला चलता है जब, हो जाते चुप सब।
हमने लगाया है, 6 गेंद पर 6 सिक्सर
कैसा भी बॉलर स्पीनर या फास्टर

धोनी के पोस्टर वाला खिलाड़ी:
अपना भी चलता क्रिकेट में सिक्का है।
हुनर अपना देखकर दुनिया हक्का-बक्का है।
दुनिया में डंका हमने बजाया
हार के मुंह से मैच खींच लाया।
अपनी बैटिंग सबसे न्यारी है,
तभी तो कहते हैं, जीत हमारी है।
क्रिकेट की दुनिया में हो गया गदर
मार दिया-मार दिया शॉट हेली...कॉप्टर
(भज्जी के पोस्टर वाला खिलाड़ी गीत की लय में लय मिलाकर टोकता है।)
भज्जी के पोस्टर वाला खिलाड़ी: अबे चुपकर- बस कर। इतना गाकर जनता को भगाएगा। जूते पड़वाएगा, अंडे-टमाटर खिलवाएगा। परिचय कुछ ज्यादा लंबा हो गया।
(खिलाड़ी जनता से मुखातिब होकर कहता है।) अब आगे देखिए। (सभी खिलाड़ी हाथों में बैट लहराते हुए मंच से जाते हैं।)

                                      सीन-तीन
सोनू स्कूल से घर लौट रहा है। रास्ते में कुछ अन्य स्कूली बच्चों को क्रिकेट खेलता देखकर उनके साथ क्रिकेट खेलने लग जाता है। सोनू बैटिंग के दौरान एक जोरदार शॉट मारता है। सोनू पहले तो खुश होता है, लेकिन जब किसी के घर की खिड़की का शीशा टूटने की आवाज आती है, तो वह वहां से भाग जाता है। रास्ते में वह गाना गाता है।
बैट है बल्ला है, चारों ओर हल्ला है।
आई एम द बेस्ट-3
बैटिंग करूंगा ऐसी, विरोधियों की ऐसी-तैसी।
मानता है लोहा मेरा, सारा मोहल्ला है।
बैट है बल्ला है, चारों ओर हल्ला है।
ढींग चिका- ढींग चिका...
(डांस करता हुआ मंच से बाहर जाता है, जबकि बाकी बच्चे डांस करते हैं।)                          

सीन-चार
सोनू हांफता हुआ घर पहुंचकर अपना स्कूल बैग रखता है।
सोनू : (दर्शकों से मुखातिब होते हुए) कभी-कभी सोचता हूं, अगर हमें पढ़ाई नहीं करने की आजादी होती तो कितना अच्छा होता। मजा आता। स्कूल की वजह से मुझे 6 बजे उठना पड़ता है और पापा के मजे हैं, उन्हें 7 बजे उठना पड़ता है। ये कैसी सजा। (इस बीच मम्मी आती है और उसकी बात सुनती है। उसका कान पकड़कर कहती है।)
मम्मी: अगर बच्चों के पास पढ़ाई करने की जिम्मेदारी नहीं हो, तो सोचो क्या होगा।
सोनू: क्या होगा
मम्मी: दिनभर मेरा दिमाग खाता रहेगा और क्या।
सोनू: नहीं मम्मी। आप गलत सोच रहीं हैं।
मम्मी: सोनू अब मेरा दिमाग मत खा। चल खाना खा।
सोनू: अभी भूख नहीं है।
मम्मी: (हंसते हुए) खाना खाने की या दिमाग खाने की।
मम्मी: अच्छा मम्मी मैं जा रहा हूं। (तेजी से चुपचाप घर से भागने की कोशिश करता है। पीछे से उसकी मम्मी आवाज लगाती है।)
मम्मी: अरे सुनो सोनू बेटा, स्कूल से आते ही कहां चल दिया। खाना नहीं खाएगा क्या?
सोनू: मम्मी वो आज सार्थक की टीम के साथ क्रिकेट मैच है ना। मुझे पहले ही देर हो चुकी है मम्मी। खाना खाने का समय नहीं है। मैंने स्कूल की कैंटीन में नाश्ता कर लिया है।
मम्मी: (सोनू के सिर पर हाथ फेरते हुए) बेटा थोड़ा खाना खा ले।
सोनू: नहीं मम्मी, मुझे पहले ही देर हो चुकी है। मम्मी देखो 2 तो यहीं बज चुके हैं। ढाई बजे से सार्थक की टीम के साथ हमारा मैच है।   
मम्मी: खाना नहीं खाना तो कोई बात नहीं। मैंने आज तेरे लिए खीर बनाई है।
(मम्मी खीर लेकर आती है और टेबल पर रखकर चली जाती है। सोनू जल्दी-जल्दी खीर खाकर मम्मी को बाय-बाय करता हुआ कमरे से बाहर जाता है। उसी दौरान मम्मी आती है और दर्शकों से मुखातिब होती है।
मम्मी:  आजकल के बच्चे तो... एक हमारा जमाना था जब बड़े-बड़े मैदान हुआ करते थे, लेकिन खेलने की आजादी नहीं होती थी और अब खेलने की आजादी है तो शहरों में खेलने के मैदान ही नहीं बचे। शहर तो ऐसे बसा दिए। 16-16 मंजिला इमारत। खुले आसमान का दीदार करना हो तो 1 किमी का सफर तय करना पड़ता है, तब कहीं जाकर चांद-तार दिखते हैं। पिछले महीने सोनू गांव गया था। तारों से भरा आसमान देखकर तो वह उन्हें गिनने ही बैठ गया। भला आज तक कोई आसमान के तारे भी गिन पाया है। खैर अब ये क्रिकेट क्या बला है। यहां तो हर गली में सहवाग हैं। बच्चे गली-मोहल्लों में खेलते हैं। सहवाग ही क्यों यहां अब तो धोनी भी बहुत सारे हैं, जिनका हेलिकॉप्टर शॉट घरों की खिड़कियों के कांच तोड़ देता है। अभी कल ही मिसेज शर्मा ने पांच हजार रुपये का बिल थमा दिया, बता रहीं थीं सोनू ने उनकी कार का शीशा तोड़ दिया था। जनता जनार्दन आप ही बताओ लोगों के घरों में पार्किंग की सुविधा तो होती नहीं है ओर अपनी कारें खड़ी करते हैं सड़क पर। ऐसे में बच्चे खेलेंगे तो कारों के शीशे तो टूटेंगे ही। यादों में अपने जमाने को याद करती है। एक बार मैं भी अपनी खास सहेली शीला के घर गई थी। खेलते-खेलते कब शाम हो गई, पता ही नहीं चला। घर लौटने पर ... ( यादों में मंच के एक कोने में अपने पिता को डांटते हुए देखती है।) (1-2 खेल वह खेलकर दिखाती भी है। खेलने के दौरान 1-2 बार गिरती है। गिरते-गिरते वह मंच से बाहर जाती है।
सीन- पांच
मैदान के गेट पर सोनू की टीम के खिलाड़ी उसका बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। शुरू में सभी ग्रुप बनाकर बातें करते हैं। कुछ ही देर बाद सभी खिलाड़ी एक साथ मिलकर चर्चा करते हैं।
दीपक:  सोनू भी अजीब है। टीम का कैप्टन है, लेकिन कभी समय से नहीं आता।
पुलकित: दीपक यह बात तो तुमने बिल्कुल सही कही, हमेशा देर से आता है सोनू।
रोहित: पिछले मैच में ही 30 रन पर हमारी पूरी टीम आउट हो गई, तब कहीं जाकर कैप्टन साहब के दर्शन हुए।
कपिल: लेकिन सोनू ने ही 50 रन की पारी खेलकर टीम को मजबूत स्थिति में पहुंचाया और जिताया भी।
बंटी: हां यह बात तो माननी पड़ेगी। सोनू है तो दमदार खिलाड़ी। ऐसा भी नहीं है कि सोनू हमेशा ही लेट आता है। कभी-कभी तो...
पुलकित:  चुप कर सोनू के चमचे, जब देखो उसकी तारीफ करता रहता है। यह कोई तरीका है। उधर देखो सार्थक की टीम के खिलाड़ी अभ्यास कर रहे हैं और हमारी टीम का कैप्टन ही गायब है।
(मामले की गंभीरता को देखकर रवि बीच-बचाव के लिए आता है।)
रवि: अरे भई बस करो। 10 मिनट बाद टॉस होना है और तुम लोग लड़ रहो हो। सोनू रास्ते में कहीं फंस गया होगा। सड़क पर जाम भी तो बहुत लगता है।
दीपक: (बीच में बोल पड़ता है) क्यों नहीं। सड़क पर ही कहीं फंसा होगा। देखो सोनू अभी लेट आने का क्या बहाना बनाता है।
बंटी: (सबका ध्यान मंच के एक कोने की ओर दिलाता है। सभी मंच के उस कोने की ओर देखते हैं।) वह देखो अपना कैप्टन आ रहा है।
पुलकित: सोनू अभी आते ही बोलेगा। क्या बताऊं यार। एक बुढ़िया को सड़क पार कराने में ही सारी देर हो गई।
दीपक: (दीपक सोनू की एक्टिंग करके बताता है) यार वो है ना... बुढ़िया को कई बार सड़क पार करानी पड़ी।
पुलकित: मतलब।
दीपक: दरअसल वह बुढ़िया सड़क पार ही नहीं करना चाहती थी।
बंटी: अरे... ये तो चुटकुला है।
दीपक: और नहीं तो क्या...
(इस पर सभी ठहाका लगाकर हंसते हैं। इसी दौरान सोनू दौड़ता हुआ अपनी टीम के साथियों के पास आता है।
सोनू: क्या बताऊं यार वो मम्मी ने खीर बनाई थी... खाने की जिद कर रही थी। खीर खाने में सारी देर हो गई।
दीपक: अच्छा सोनू सच बताना। खीर खाने में देर हुई या खीर खाने का बहाना बनाने में...
(यह सुनकर सब एक साथ हंसते हैं और मंच से चले जाते हैं।)
                
सीन-छह

(दोनों टीमों के खिलाड़ी मैदान पर जमा हैं। टॉस सोनू जीतता है और पहले बैटिंग करने का फैसला लेता है। सोनू और बंटी ओपनिंग करने मैदान में उतरते हैं। मंच पर क्रिकेट खेला जाता है। एक बॉल पर सोनू के शानदार शॉट से बॉल गुम हो जाती है।)
दीपक: (गेंद ढूंढ़ने के समय) ये माली भी न। खेल के मैदान में भी किनारे फूल-पौधे लगा देते हैं और हमारी रोज बॉल गुम हो जाती है।
रवि: बॉल तो रोज गुम होती है और हम रोज बॉल ढूंढ़ निकालते हैं।
दीपक: इससे टाइम तो वेस्ट होता है।
रवि: पेड़-पौधे ही तो हमें जीवन देते हैं। इनका भी होना जरूरी है।
(सोनू आकर बीच-बचाव करता है। तभी बंटी बॉल मिलने की खबर देता है।)
बंटी: मिल गई भई मिल गई। बॉल हमारी मिल गई।
(बॉल मिलने की खुशी में सभी खिलाड़ी मंच डांस करते हैं और गीत गाते हैं।)
छिप नहीं सकता अपनी निगाहों से कोई भी रस्ता,
गोल-गोल सूरज है, गोल-गोल चंदा।
चांद पे कदम रखने वाला अपना ही बंदा।
बहा के अपना खून पसीना
चीरा है हमने धरती का सीना।
दुनिया को जीरो का फंडा बताया
हमने ही दुनिया को जीना सिखाया।
छिप नहीं सकता अपनी निगाहों से कोई भी रस्ता।
(सभी नाचते-गाते मंच से बाहर जाते हैं।)

                      

सीन- सात
(मंच पर बनी पिच के बीचोंबीच एक बुजुर्ग बंदर दो और छोटे बंदरों के साथ बैठा हुआ है। खेल रुक गया है। इस बीच दीपक बैट लेकर मारने के लिए करीब जाता है। दीपक बैट मार बंदर इससे पहले ही एक जोरदार थप्पड़ मारता है। दीपक गाल सहलाता हुआ वापस दोस्तों के पास आ जाता है।)
दीपक: यार जोर का थप्पड़ तो जोरदार पड़ गया। (दीपक गाल अब भी सहला रहा है।)
बंटी: वाह क्या थप्पड़ जड़ा है। (दीपक का गाल देखकर मजाक उड़ाता है।) उंगलियां नहीं पूरा पंजा छपा है।
दीपक: छोड़ न यार। ऐसा जोरदार थप्पड़ तो पापा ने भी कभी नहीं मारा। तब भी नहीं जब पिछले साल मैं मैथ्स में फेल हो गया था।
(सभी साथी खिलाड़ी दीपक से सहानुभूति जताते हैं। कुछ मजाकिया अंदाज में तो कुछ संजीदा होकर। सभी आपस में मिलकर चर्चा करते हैं कि क्या किया जाए, जिससे बंदर पिच से उठकर चले जाएं और क्रिकेट का खेल दोबारा शुरू हो सके।)
सोनू: लगता है, ये बंदर भूखे हैं।
बंटी: सोनू सही कह रहा है।
पुलकित: हां-हां हमें केले ही मंगाने चाहिए।
सभी खिलाड़ी : हां-हां हमें केले ही मंगाने चाहिए।
दीपक: (गाल सहलाते हुए) केले क्यों?
बंटी: क्योंकि बंदर केले खाना ज्यादा पसंद करते हैं।
(सोनू केले लेने जाता है। इधर बंदर के दाएं-बाएं खिलाड़ी खड़े हैं। सोनू केले लेकर आता है। अब सवाल पैदा होता है कि बंदरों को केले खिलाए कौन, क्योंकि सबको बंदरों के पास जाने से डर लग रहा है।)
पुलकित: केले तो आ गए। अब बंदरों को केले खिलाएगा कौन?
(इस सवाल पर शुरुआत में सभी एक-दूसरे की ओर देखते हैं। बाद में सभी खिलाड़ी दीपक की ओर देखते हैं जो अब भी गाल पर हाथ रखे डरा-सहमा खड़ा है।)
सोनू: हां-हां बंदरों को तुमने ही नाराज किया है, तुम्हें ही बंदर को केले खिलाने चाहिए।
बंटी:  ये तो सही बात है।
दीपक: नहीं-नहीं ये मुझसे नहीं होगा।
पुलकित: भई गलती तुमने की है, तो तुम्हें सुधारनी भी चाहिए।
दीपक: नहीं-नहीं मैं ये नहीं कर पाऊंगा।
सोनू: बंदरों को केले तो दीपक तुम्हें ही खिलाने होंगे। एक बात जान लो जानवर कभी हिंसक नहीं होता। जब कोई जानवरों पर हमला करता है, तभी वह हिंसक होता है।
(सबके कहने पर आखिरकार दीपक बंदरों को केले खिलाने के लिए राजी हो जाता है। डरा-सहमा दीपक केले ले जाकर बंदरों के सामने रखकर वापस आने लगता है। सुनो... की आवाज सुनकर वह पीछे मुड़कर देखता है।)
बंदर: सुनो बेटा (सुनकर सभी खिलाड़ी चौंक उठते हैं।) 
सब एक साथ बोलते हैं : बोलने वाला बंदर
बंटी: ये बोलने वाला बंदर कैसा?
बंदर (दीपक से कहता है) : अब तो बेटा तुम समझ ही गए होगे कि हर समस्या हिंसा से हल नहीं की जा सकती है। जिस दिन हिंसा से ही हर समस्या हल होने लगेगी उस दिन इंसान के अस्तित्व पर ही संकट आ जाएगा।
दीपक: हां बंदर मामा। क्या मैं आपको बंदर मामा कह सकता हूं?
बंदर: तुम ही क्यों सभी मुझे बंदर मामा कह सकते हो। (सोनू के सिर पर हाथ फेरते हुए) धन्यवाद बेटा। जोरों की भूख लगी थी। केले खाकर कुछ राहत मिली है।
सोनू: लेकिन बंदर मामा ये तो बताइए कि आप हमारी पिच पर ही आकर बैठ गए, जिससे हमारा खेल ही रुक गया। अब शाम होने लगी है। मैच खत्म नहीं हुआ, हमें घर भी जाना है।
बंदर: मुझे और मेरे इन बच्चों को जोरो की भूख लगी थी, इसलिए इस पिच के बीचोबीच बैठ गए। मुझे पक्का भरोसा था कि बच्चे जरूर हमें कुछ न कुछ खिलाएंगे, क्योंकि बच्चे जानवरों, पशु-पक्षियों से ज्यादा लगाव रखते हैं। जहां तक सवाल है यहां पहुंचने का तो इंसानों ने खुद को बसाने के लिए जंगल काट दिए। हमें बताओ हम कहां जाएं?
सोनू: पर बंदर मामा आप भी तो हमें बहुत नुकसान पहुंचाते हो? कभी किसी को घायल कर देते हो, कभी घर के बाहर टंगे कपड़े फाड़ देते हो।
बंदर: ठीक कह रहे हो सोनू। जब किसी का घर ही उजाड़ दोगे तो वह क्या करेगा। हिंसक तो हो ही जाएगा न। पिछले एक दशक में सैकड़ों बंदरों को जनता ने पीट-पीटकर मार डाला। (इतना कहते-कहते बंदर की आंखों में आसूं आ जाते हैं।) सरकार के पास हमारे लिए कोई योजना नहीं है। और इंसान कितना स्वार्थी है। विकास की राह चलते-चलते वह विनाश की ओर चल पड़ा है। हम रहें न रहें, हम जैसे जानवरों का वजूद बचे न बचे, लेकिन इंसान खुद को तो बचा ले।
बंटी: इसके लिए हमें क्या करना चाहिए?
बंदर: शहर तो ईंट-पत्थर के जंगल में तब्दील हो गए हैं। ये धरती जितनी तुम्हारी है, उतनी ही हमारी भी। इंसानों को ये हक किसने दिया कि खुद को बसाने के लिए हमें उजाड़ दें। धरती को बचाना है तो एक पेड़ काटें तो 20 पेड़ लगाएं, तभी इंसान का भला हो सकेगा और हमारा भी।
(सभी खिलाड़ी आपस में चर्चा करते हैं। जब सभी पिच की ओर देखते हैं, तब तक बंदर अपने बच्चों के साथ गायब हो चुका होता है। यह देखकर सब हैरान परेशान हैं।)

सीन-आठ

(मंच पर सूत्रधार (एक) और सूत्रधार (दो) आते हैं।)
सूत्रधार (दो): (दर्शकों से मुखातिब होकर) देखा आपने। खैर आप तो जनता जनार्दन हैं। समझदार हैं। हमारा क्या है। हम तो सोतों को जगाने आए हैं, रोतों को हंसाने आए हैं।
सूत्रधार (एक): ठीक कहां तुमने। (दर्शकों से मुखातिब होकर) हमारा काम पूरा हुआ। अब हमें चलना चाहिए।
सूत्रधार (दो): अभी एक काम बाकी है।
 (दोनों सूत्रधार मंच के एक कोने में आ जाते हैं।)
           
   
                 
सीन-नौ
मंच के दूसरे कोने से सभी खिलाड़ी आते हैं। क्रिकेटर के भेष में हैं। सभी के हाथों में बैट व बॉल की जगह हाथों में छोटे पौधे हैं। पौधे लगाने का अभिनय करते हैं।)
दीपक: हम तो जाग गए।
सोनू: आप कब जागेंगे?
पुलकित: क्रिकेट तो बहाना था।
(सभी कलाकार एकसाथ कहते हैं।): हमें तो बस यही दिखाना था।                       

(सभी कलाकार मंच से चले जाते हैं।)
(नाटक समाप्त)