सीन-एक
मंच पर दो सूत्रधार एक के एक बाद आते हैं। सूत्रधार (एक) के मुंह पर फेस पेंटिंग बनी हुई है, दाएं-बाएं गाल पर तिरंगा बना हुआ है। सूत्रधार (दो) क्रिकेटर के वेष में है। हाथ में बैट, ग्लब्स, सिर पर कैप, पैर में पैड है। दोनों सूत्रधार अलग-अलग भाव-भंगिमा बनाकर एक-दूसरे को काफी देर तक घूरते हैं। सूत्रधार के हाव-भाव से लगता है कि वे एक-दूसरे को नहीं जानते। सूत्रधार (एक) इंडिया... इंडिया... (के नारे लगाता है।) सूत्रधार (दो) बैट हवा में लहराकर दर्शकों का अभिवादन करता है। यह सब सूत्रधार (एक) आश्चर्यचकित होकर देखता है।)
सूत्रधार (एक): कौन है बे... ?
सूत्रधार (दो): (चौंकते हुए) तुम मुझे नहीं जानते?
सूत्रधार (एक): नहीं...
सूत्रधार (दो): (शर्ट के दाईं तरफ के कॉलर को गर्व से हिलाते हुए) बिल्कुल नहीं जानते।
सूत्रधार (एक): नहीं...
सूत्रधार (दो): (शर्ट के बाईं तरफ के कॉलर को गर्व से हिलाते हुए) बिल्कुल भी नहीं जानते।
सूत्रधार (एक): (दर्शकों की तरफ देखते हुए) बिल्कुल जानते हैं कि तुम पागल हो।
सूत्रधार (दो): पागल नहीं, मैं सचिन...
सूत्रधार (एक): (बीच में टोकते हुए) सचिन... तेंदुलकर... तब तो तुम पूरे पागल हो।
सूत्रधार (दो): मेरा नाम सचिन तेंदुलकर नहीं, सचिन सहवाग है।
सूत्रधार (एक): (सूत्रधार (दो) का हाथ पकड़कर) चलो तुम्हें Mental Hospital में भर्ती करवाता हूं।
सूत्रधार (दो): क्या...? Mental Hospital क्यों
सूत्रधार (एक): तुम्हारा इलाज Mental Hospital में ही हो सकता है। क्योंकि सिर्फ बैट पकड़ने वाला हर शख्स अपने आप को सचिन तेंदुलकर ही समझता है।
सूत्रधार (दो): अच्छा चल छोड़ यार। तुम्हें पता है। यहां कौन आने वाला है।
सूत्रधार (एक): कौन?
सूत्रधार (दो): सचिन, महेंद्र, युवराज, हरभजन...
सूत्रधार (एक): (बीच में टोककर) ये कौन हैं?
सूत्रधार (दो): (सूत्रधार (एक) को घूरकर देखता है फिर जोरदार ठहाका लगाता है और दर्शकों की ओर मुखातिब होकर कहता है।) जब तक इन खिलाड़ियों के आगे सरनेम न लगाओ या फिर निक नेम न बोलो तो लोग सचिन को इंश्योरेंस एजेंट, महेंद्र को दुकानवाला, युवराज सिंह को बॉडी बिल्डर और हरभजन को कीर्तन मंडली का भजन-कीर्तन वाला समझते हैं। (सूत्रधार (एक) की ओर देखकर) कुछ सुनाई दे रहा है। खिलाड़ी आ रहे हैं। वह देखो अरे पूरी इंडियन टीम आ रही है। दोनों सूत्रधार मंच से चले जाते हैं।)
सूत्रधार (दो): (कुछ सेकेंड बाद मंच पर आता है। जल्दी से कहता है।) क्रिकेट तो बहाना है। हमें तो कुछ और ही दिखाना है।
(मंच से चला जाता है।)
सीन- दो
मंच पर सभी कलाकार आते हैं। सबके चेहरों पर अलग-अलग खिलाड़ियों के पोस्टर लगे हुए हैं। महेंद्र सिंह धोनी, हरभजन सिंह, सचिन, सहवाग, युवराज सिंह मुख्य हैं। सबके हाथ में बैट है। सभी खिलाड़ी अपना-अपना एक्शन करके दिखाते हैं, जैसे हरभजन बॉलिंग और सचिन बैटिंग करके दिखाते हैं। हर खिलाड़ी गीत गाता है।
भज्जी के पोस्टर वाला खिलाड़ी: मैं हूं भज्जी, बॉलिंग से मेरी डरता हर कोई जी।
अपने कमाल हैं, करते हम धमाल हैं। सामने हो कोई भी,
अपने आगे, चलती किसी की न जी (साथी खिलाड़ी गाते हैं)।
जोश में जब आते हैं, कुछ भी कर जाते हैं।
उड़ा हम देते हैं, सबकी धज्जी जी।
(खिलाड़ी सारी पंक्ति दोहराता है।)
सचिन के पोस्टर वाला खिलाड़ी: मैं हूं ब्लास्टर, क्रिकेट का मास्टर
कहती है दुनिया मुझे मास्टर ब्लास्टर
शॉट लगाता हूं, छक्के छुड़ाता हूं
बॉलर को दिन में मैं तारे दिखाता हूं।
चलता है अपना क्रिकेट में जलवा।
जलवा... जलवा... जलवा...
(खिलाड़ी सारी पंक्ति दोहराता है।)
युवराज के पोस्टर वाला खिलाड़ी:
हम किसी से कम नहीं, हम जैसा किसी में दम नहीं।
कैसा भी हो बॉलर, स्पीनर या फास्टर
बल्ला चलता है जब, हो जाते चुप सब।
हमने लगाया है, 6 गेंद पर 6 सिक्सर
कैसा भी बॉलर स्पीनर या फास्टर
धोनी के पोस्टर वाला खिलाड़ी:
अपना भी चलता क्रिकेट में सिक्का है।
हुनर अपना देखकर दुनिया हक्का-बक्का है।
दुनिया में डंका हमने बजाया
हार के मुंह से मैच खींच लाया।
अपनी बैटिंग सबसे न्यारी है,
तभी तो कहते हैं, जीत हमारी है।
क्रिकेट की दुनिया में हो गया गदर
मार दिया-मार दिया शॉट हेली...कॉप्टर
(भज्जी के पोस्टर वाला खिलाड़ी गीत की लय में लय मिलाकर टोकता है।)
भज्जी के पोस्टर वाला खिलाड़ी: अबे चुपकर- बस कर। इतना गाकर जनता को भगाएगा। जूते पड़वाएगा, अंडे-टमाटर खिलवाएगा। परिचय कुछ ज्यादा लंबा हो गया।
(खिलाड़ी जनता से मुखातिब होकर कहता है।) अब आगे देखिए। (सभी खिलाड़ी हाथों में बैट लहराते हुए मंच से जाते हैं।)
सीन-तीन
सोनू स्कूल से घर लौट रहा है। रास्ते में कुछ अन्य स्कूली बच्चों को क्रिकेट खेलता देखकर उनके साथ क्रिकेट खेलने लग जाता है। सोनू बैटिंग के दौरान एक जोरदार शॉट मारता है। सोनू पहले तो खुश होता है, लेकिन जब किसी के घर की खिड़की का शीशा टूटने की आवाज आती है, तो वह वहां से भाग जाता है। रास्ते में वह गाना गाता है।
बैट है बल्ला है, चारों ओर हल्ला है।
आई एम द बेस्ट-3
बैटिंग करूंगा ऐसी, विरोधियों की ऐसी-तैसी।
मानता है लोहा मेरा, सारा मोहल्ला है।
बैट है बल्ला है, चारों ओर हल्ला है।
ढींग चिका- ढींग चिका...
(डांस करता हुआ मंच से बाहर जाता है, जबकि बाकी बच्चे डांस करते हैं।)
सीन-चार
सोनू हांफता हुआ घर पहुंचकर अपना स्कूल बैग रखता है।
सोनू : (दर्शकों से मुखातिब होते हुए) कभी-कभी सोचता हूं, अगर हमें पढ़ाई नहीं करने की आजादी होती तो कितना अच्छा होता। मजा आता। स्कूल की वजह से मुझे 6 बजे उठना पड़ता है और पापा के मजे हैं, उन्हें 7 बजे उठना पड़ता है। ये कैसी सजा। (इस बीच मम्मी आती है और उसकी बात सुनती है। उसका कान पकड़कर कहती है।)
मम्मी: अगर बच्चों के पास पढ़ाई करने की जिम्मेदारी नहीं हो, तो सोचो क्या होगा।
सोनू: क्या होगा
मम्मी: दिनभर मेरा दिमाग खाता रहेगा और क्या।
सोनू: नहीं मम्मी। आप गलत सोच रहीं हैं।
मम्मी: सोनू अब मेरा दिमाग मत खा। चल खाना खा।
सोनू: अभी भूख नहीं है।
मम्मी: (हंसते हुए) खाना खाने की या दिमाग खाने की।
मम्मी: अच्छा मम्मी मैं जा रहा हूं। (तेजी से चुपचाप घर से भागने की कोशिश करता है। पीछे से उसकी मम्मी आवाज लगाती है।)
मम्मी: अरे सुनो सोनू बेटा, स्कूल से आते ही कहां चल दिया। खाना नहीं खाएगा क्या?
सोनू: मम्मी वो आज सार्थक की टीम के साथ क्रिकेट मैच है ना। मुझे पहले ही देर हो चुकी है मम्मी। खाना खाने का समय नहीं है। मैंने स्कूल की कैंटीन में नाश्ता कर लिया है।
मम्मी: (सोनू के सिर पर हाथ फेरते हुए) बेटा थोड़ा खाना खा ले।
सोनू: नहीं मम्मी, मुझे पहले ही देर हो चुकी है। मम्मी देखो 2 तो यहीं बज चुके हैं। ढाई बजे से सार्थक की टीम के साथ हमारा मैच है।
मम्मी: खाना नहीं खाना तो कोई बात नहीं। मैंने आज तेरे लिए खीर बनाई है।
(मम्मी खीर लेकर आती है और टेबल पर रखकर चली जाती है। सोनू जल्दी-जल्दी खीर खाकर मम्मी को बाय-बाय करता हुआ कमरे से बाहर जाता है। उसी दौरान मम्मी आती है और दर्शकों से मुखातिब होती है।
मम्मी: आजकल के बच्चे तो... एक हमारा जमाना था जब बड़े-बड़े मैदान हुआ करते थे, लेकिन खेलने की आजादी नहीं होती थी और अब खेलने की आजादी है तो शहरों में खेलने के मैदान ही नहीं बचे। शहर तो ऐसे बसा दिए। 16-16 मंजिला इमारत। खुले आसमान का दीदार करना हो तो 1 किमी का सफर तय करना पड़ता है, तब कहीं जाकर चांद-तार दिखते हैं। पिछले महीने सोनू गांव गया था। तारों से भरा आसमान देखकर तो वह उन्हें गिनने ही बैठ गया। भला आज तक कोई आसमान के तारे भी गिन पाया है। खैर अब ये क्रिकेट क्या बला है। यहां तो हर गली में सहवाग हैं। बच्चे गली-मोहल्लों में खेलते हैं। सहवाग ही क्यों यहां अब तो धोनी भी बहुत सारे हैं, जिनका हेलिकॉप्टर शॉट घरों की खिड़कियों के कांच तोड़ देता है। अभी कल ही मिसेज शर्मा ने पांच हजार रुपये का बिल थमा दिया, बता रहीं थीं सोनू ने उनकी कार का शीशा तोड़ दिया था। जनता जनार्दन आप ही बताओ लोगों के घरों में पार्किंग की सुविधा तो होती नहीं है ओर अपनी कारें खड़ी करते हैं सड़क पर। ऐसे में बच्चे खेलेंगे तो कारों के शीशे तो टूटेंगे ही। यादों में अपने जमाने को याद करती है। एक बार मैं भी अपनी खास सहेली शीला के घर गई थी। खेलते-खेलते कब शाम हो गई, पता ही नहीं चला। घर लौटने पर ... ( यादों में मंच के एक कोने में अपने पिता को डांटते हुए देखती है।) (1-2 खेल वह खेलकर दिखाती भी है। खेलने के दौरान 1-2 बार गिरती है। गिरते-गिरते वह मंच से बाहर जाती है।
सीन- पांच
मैदान के गेट पर सोनू की टीम के खिलाड़ी उसका बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। शुरू में सभी ग्रुप बनाकर बातें करते हैं। कुछ ही देर बाद सभी खिलाड़ी एक साथ मिलकर चर्चा करते हैं।
दीपक: सोनू भी अजीब है। टीम का कैप्टन है, लेकिन कभी समय से नहीं आता।
पुलकित: दीपक यह बात तो तुमने बिल्कुल सही कही, हमेशा देर से आता है सोनू।
रोहित: पिछले मैच में ही 30 रन पर हमारी पूरी टीम आउट हो गई, तब कहीं जाकर कैप्टन साहब के दर्शन हुए।
कपिल: लेकिन सोनू ने ही 50 रन की पारी खेलकर टीम को मजबूत स्थिति में पहुंचाया और जिताया भी।
बंटी: हां यह बात तो माननी पड़ेगी। सोनू है तो दमदार खिलाड़ी। ऐसा भी नहीं है कि सोनू हमेशा ही लेट आता है। कभी-कभी तो...
पुलकित: चुप कर सोनू के चमचे, जब देखो उसकी तारीफ करता रहता है। यह कोई तरीका है। उधर देखो सार्थक की टीम के खिलाड़ी अभ्यास कर रहे हैं और हमारी टीम का कैप्टन ही गायब है।
(मामले की गंभीरता को देखकर रवि बीच-बचाव के लिए आता है।)
रवि: अरे भई बस करो। 10 मिनट बाद टॉस होना है और तुम लोग लड़ रहो हो। सोनू रास्ते में कहीं फंस गया होगा। सड़क पर जाम भी तो बहुत लगता है।
दीपक: (बीच में बोल पड़ता है) क्यों नहीं। सड़क पर ही कहीं फंसा होगा। देखो सोनू अभी लेट आने का क्या बहाना बनाता है।
बंटी: (सबका ध्यान मंच के एक कोने की ओर दिलाता है। सभी मंच के उस कोने की ओर देखते हैं।) वह देखो अपना कैप्टन आ रहा है।
पुलकित: सोनू अभी आते ही बोलेगा। क्या बताऊं यार। एक बुढ़िया को सड़क पार कराने में ही सारी देर हो गई।
दीपक: (दीपक सोनू की एक्टिंग करके बताता है) यार वो है ना... बुढ़िया को कई बार सड़क पार करानी पड़ी।
पुलकित: मतलब।
दीपक: दरअसल वह बुढ़िया सड़क पार ही नहीं करना चाहती थी।
बंटी: अरे... ये तो चुटकुला है।
दीपक: और नहीं तो क्या...
(इस पर सभी ठहाका लगाकर हंसते हैं। इसी दौरान सोनू दौड़ता हुआ अपनी टीम के साथियों के पास आता है।
सोनू: क्या बताऊं यार वो मम्मी ने खीर बनाई थी... खाने की जिद कर रही थी। खीर खाने में सारी देर हो गई।
दीपक: अच्छा सोनू सच बताना। खीर खाने में देर हुई या खीर खाने का बहाना बनाने में...
(यह सुनकर सब एक साथ हंसते हैं और मंच से चले जाते हैं।)
सीन-छह
(दोनों टीमों के खिलाड़ी मैदान पर जमा हैं। टॉस सोनू जीतता है और पहले बैटिंग करने का फैसला लेता है। सोनू और बंटी ओपनिंग करने मैदान में उतरते हैं। मंच पर क्रिकेट खेला जाता है। एक बॉल पर सोनू के शानदार शॉट से बॉल गुम हो जाती है।)
दीपक: (गेंद ढूंढ़ने के समय) ये माली भी न। खेल के मैदान में भी किनारे फूल-पौधे लगा देते हैं और हमारी रोज बॉल गुम हो जाती है।
रवि: बॉल तो रोज गुम होती है और हम रोज बॉल ढूंढ़ निकालते हैं।
दीपक: इससे टाइम तो वेस्ट होता है।
रवि: पेड़-पौधे ही तो हमें जीवन देते हैं। इनका भी होना जरूरी है।
(सोनू आकर बीच-बचाव करता है। तभी बंटी बॉल मिलने की खबर देता है।)
बंटी: मिल गई भई मिल गई। बॉल हमारी मिल गई।
(बॉल मिलने की खुशी में सभी खिलाड़ी मंच डांस करते हैं और गीत गाते हैं।)
छिप नहीं सकता अपनी निगाहों से कोई भी रस्ता,
गोल-गोल सूरज है, गोल-गोल चंदा।
चांद पे कदम रखने वाला अपना ही बंदा।
बहा के अपना खून पसीना
चीरा है हमने धरती का सीना।
दुनिया को जीरो का फंडा बताया
हमने ही दुनिया को जीना सिखाया।
छिप नहीं सकता अपनी निगाहों से कोई भी रस्ता।
(सभी नाचते-गाते मंच से बाहर जाते हैं।)
सीन- सात
(मंच पर बनी पिच के बीचोंबीच एक बुजुर्ग बंदर दो और छोटे बंदरों के साथ बैठा हुआ है। खेल रुक गया है। इस बीच दीपक बैट लेकर मारने के लिए करीब जाता है। दीपक बैट मार बंदर इससे पहले ही एक जोरदार थप्पड़ मारता है। दीपक गाल सहलाता हुआ वापस दोस्तों के पास आ जाता है।)
दीपक: यार जोर का थप्पड़ तो जोरदार पड़ गया। (दीपक गाल अब भी सहला रहा है।)
बंटी: वाह क्या थप्पड़ जड़ा है। (दीपक का गाल देखकर मजाक उड़ाता है।) उंगलियां नहीं पूरा पंजा छपा है।
दीपक: छोड़ न यार। ऐसा जोरदार थप्पड़ तो पापा ने भी कभी नहीं मारा। तब भी नहीं जब पिछले साल मैं मैथ्स में फेल हो गया था।
(सभी साथी खिलाड़ी दीपक से सहानुभूति जताते हैं। कुछ मजाकिया अंदाज में तो कुछ संजीदा होकर। सभी आपस में मिलकर चर्चा करते हैं कि क्या किया जाए, जिससे बंदर पिच से उठकर चले जाएं और क्रिकेट का खेल दोबारा शुरू हो सके।)
सोनू: लगता है, ये बंदर भूखे हैं।
बंटी: सोनू सही कह रहा है।
पुलकित: हां-हां हमें केले ही मंगाने चाहिए।
सभी खिलाड़ी : हां-हां हमें केले ही मंगाने चाहिए।
दीपक: (गाल सहलाते हुए) केले क्यों?
बंटी: क्योंकि बंदर केले खाना ज्यादा पसंद करते हैं।
(सोनू केले लेने जाता है। इधर बंदर के दाएं-बाएं खिलाड़ी खड़े हैं। सोनू केले लेकर आता है। अब सवाल पैदा होता है कि बंदरों को केले खिलाए कौन, क्योंकि सबको बंदरों के पास जाने से डर लग रहा है।)
पुलकित: केले तो आ गए। अब बंदरों को केले खिलाएगा कौन?
(इस सवाल पर शुरुआत में सभी एक-दूसरे की ओर देखते हैं। बाद में सभी खिलाड़ी दीपक की ओर देखते हैं जो अब भी गाल पर हाथ रखे डरा-सहमा खड़ा है।)
सोनू: हां-हां बंदरों को तुमने ही नाराज किया है, तुम्हें ही बंदर को केले खिलाने चाहिए।
बंटी: ये तो सही बात है।
दीपक: नहीं-नहीं ये मुझसे नहीं होगा।
पुलकित: भई गलती तुमने की है, तो तुम्हें सुधारनी भी चाहिए।
दीपक: नहीं-नहीं मैं ये नहीं कर पाऊंगा।
सोनू: बंदरों को केले तो दीपक तुम्हें ही खिलाने होंगे। एक बात जान लो जानवर कभी हिंसक नहीं होता। जब कोई जानवरों पर हमला करता है, तभी वह हिंसक होता है।
(सबके कहने पर आखिरकार दीपक बंदरों को केले खिलाने के लिए राजी हो जाता है। डरा-सहमा दीपक केले ले जाकर बंदरों के सामने रखकर वापस आने लगता है। सुनो... की आवाज सुनकर वह पीछे मुड़कर देखता है।)
बंदर: सुनो बेटा (सुनकर सभी खिलाड़ी चौंक उठते हैं।)
सब एक साथ बोलते हैं : बोलने वाला बंदर
बंटी: ये बोलने वाला बंदर कैसा?
बंदर (दीपक से कहता है) : अब तो बेटा तुम समझ ही गए होगे कि हर समस्या हिंसा से हल नहीं की जा सकती है। जिस दिन हिंसा से ही हर समस्या हल होने लगेगी उस दिन इंसान के अस्तित्व पर ही संकट आ जाएगा।
दीपक: हां बंदर मामा। क्या मैं आपको बंदर मामा कह सकता हूं?
बंदर: तुम ही क्यों सभी मुझे बंदर मामा कह सकते हो। (सोनू के सिर पर हाथ फेरते हुए) धन्यवाद बेटा। जोरों की भूख लगी थी। केले खाकर कुछ राहत मिली है।
सोनू: लेकिन बंदर मामा ये तो बताइए कि आप हमारी पिच पर ही आकर बैठ गए, जिससे हमारा खेल ही रुक गया। अब शाम होने लगी है। मैच खत्म नहीं हुआ, हमें घर भी जाना है।
बंदर: मुझे और मेरे इन बच्चों को जोरो की भूख लगी थी, इसलिए इस पिच के बीचोबीच बैठ गए। मुझे पक्का भरोसा था कि बच्चे जरूर हमें कुछ न कुछ खिलाएंगे, क्योंकि बच्चे जानवरों, पशु-पक्षियों से ज्यादा लगाव रखते हैं। जहां तक सवाल है यहां पहुंचने का तो इंसानों ने खुद को बसाने के लिए जंगल काट दिए। हमें बताओ हम कहां जाएं?
सोनू: पर बंदर मामा आप भी तो हमें बहुत नुकसान पहुंचाते हो? कभी किसी को घायल कर देते हो, कभी घर के बाहर टंगे कपड़े फाड़ देते हो।
बंदर: ठीक कह रहे हो सोनू। जब किसी का घर ही उजाड़ दोगे तो वह क्या करेगा। हिंसक तो हो ही जाएगा न। पिछले एक दशक में सैकड़ों बंदरों को जनता ने पीट-पीटकर मार डाला। (इतना कहते-कहते बंदर की आंखों में आसूं आ जाते हैं।) सरकार के पास हमारे लिए कोई योजना नहीं है। और इंसान कितना स्वार्थी है। विकास की राह चलते-चलते वह विनाश की ओर चल पड़ा है। हम रहें न रहें, हम जैसे जानवरों का वजूद बचे न बचे, लेकिन इंसान खुद को तो बचा ले।
बंटी: इसके लिए हमें क्या करना चाहिए?
बंदर: शहर तो ईंट-पत्थर के जंगल में तब्दील हो गए हैं। ये धरती जितनी तुम्हारी है, उतनी ही हमारी भी। इंसानों को ये हक किसने दिया कि खुद को बसाने के लिए हमें उजाड़ दें। धरती को बचाना है तो एक पेड़ काटें तो 20 पेड़ लगाएं, तभी इंसान का भला हो सकेगा और हमारा भी।
(सभी खिलाड़ी आपस में चर्चा करते हैं। जब सभी पिच की ओर देखते हैं, तब तक बंदर अपने बच्चों के साथ गायब हो चुका होता है। यह देखकर सब हैरान परेशान हैं।)
सीन-आठ
(मंच पर सूत्रधार (एक) और सूत्रधार (दो) आते हैं।)
सूत्रधार (दो): (दर्शकों से मुखातिब होकर) देखा आपने। खैर आप तो जनता जनार्दन हैं। समझदार हैं। हमारा क्या है। हम तो सोतों को जगाने आए हैं, रोतों को हंसाने आए हैं।
सूत्रधार (एक): ठीक कहां तुमने। (दर्शकों से मुखातिब होकर) हमारा काम पूरा हुआ। अब हमें चलना चाहिए।
सूत्रधार (दो): अभी एक काम बाकी है।
(दोनों सूत्रधार मंच के एक कोने में आ जाते हैं।)
सीन-नौ
मंच के दूसरे कोने से सभी खिलाड़ी आते हैं। क्रिकेटर के भेष में हैं। सभी के हाथों में बैट व बॉल की जगह हाथों में छोटे पौधे हैं। पौधे लगाने का अभिनय करते हैं।)
दीपक: हम तो जाग गए।
सोनू: आप कब जागेंगे?
पुलकित: क्रिकेट तो बहाना था।
(सभी कलाकार एकसाथ कहते हैं।): हमें तो बस यही दिखाना था।
(सभी कलाकार मंच से चले जाते हैं।)
(नाटक समाप्त)